Budget2020: हेल्थ सेक्टर की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा बजट

Budget2020: हेल्थ सेक्टर की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा बजट

नरजिस हुसैन

देश का बजट आ चुका है और अब बारी है आम आदमी की अपने घर का बजट बनाने की। बजट 2020-21 ने आम आदमी को कुछ खास नहीं दिया है हालत कमोबेश 19-20 के फर्क की मानी जा सकती है। शनिवार को आए देश के इस बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्वास्थ्य क्षेत्र को 69,000 करोड़ रुपए दिए या आवंटित किए। बजट 2019-20 में इस क्षेत्र को 64,559 करोड़ रुपए दिए गए थे। तो इस लिहाज से इस साल स्वास्थ्य क्षेत्र को 4,441 करोड़ रुपए ज्यादा मिले हैं जिसे जानकारों का मानना है कि साफ जाहिर करता है कि सरकार स्वास्थ्य और उससे क्षेत्रों में ज्यादा पैसा खर्च का स्वास्थ्य को जन-जन और घर-घर तक पहुंचाने के लिए किए अपने वादे पर कायम है। WHO के मुताबिक भारत स्वास्थ्य के क्षेत्र में दुनिया में 184वें स्थान पर है।

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सरकार की फ्लैगशिप योजना आयुष्मान भारत यानी प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम जय) को 6400 करोड़ रुपए मिले हैं जो पिछले साल के बजट के बराबर है न उससे कम और न ही ज्यादा। यहां यह बता दें कि प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम जय) के तहत 20,000 से भी अधिक अस्पतालों को पैनल में पहले ही शामिल किया जा चुका है। सरकार ने बजट के माध्यम से कहा है कि इस योजना के तहत टियर 2 और टियर 3 शहरों में और पीपीपी मोड से अस्पताल बनाए जाएंगे। पहले चरण में 112 आकांक्षी जिलों से इसकी शुरुआत होगी। इनमें भी जिन जिलों में एक भी अस्पताल पैनल में नहीं है, उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी। इससे बड़ी संख्या में रोजगार मिलेगा।

यह योजना सरकार की बेहद महत्वाकांक्षी योजना है मोदीकेयर के नाम से मशहूर आयुष्मान भारत योजना (ABY) 25 सितंबर, 2019 से शुरू हो चुकी है। केंद्र सरकार आयुष्मान योजना के तहत देश के 13.6 करोड़ परिवारों को सालाना 5 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध करा रही है। नवंबर 2019 तक 7,609 करोड़ के दावों के मद्देनजर 54.85 लाख का भुगतान किया जा चुका है। यह देश के गरीब लोगों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम है। लेकिन, इस योजना के तहत मरीज को बेसिक स्वास्थ्य सुविधा तो मिल जाती है पर अब इलाज का बड़ा हिस्सा दवाइयों का मरीज को खुद ही खरीदना पड़ रहा है।

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इस साल के बजट में सरकार ने 6 लाख से भी ज्यादा आंगनवाड़ी महिलाओं को स्मार्ट फोन देने की बात कही है जो काफी हद तक सरकार का सराहनीय कदम मानी जा सकती है क्योंकि इन्हीं महिलाओं के जरिए स्वास्थ्य क्षेत्र का दरअसर सही आंकड़ा सरकारों तक पहुंच पाता है और जिसके बाद ही सही दिशा में सरकार नीति बना पाती है। हालांकि, यह बात सरकार ने 2019-20 के बजट में नहीं कही थी। इसके अलावा सरकार ने मातृत्व मृत्युदर और कम करने और सही पोषण गर्भवती माताओं तक पहुंचने के लिए एक टास्क फोर्स के गठन की भी बात कही है। सरकार ने पोषण संबंधी कार्यक्रमों को 35,600 करोड़ रुपए दिए हैं जो काबिलेतारीफ है। पिछले बजट में सरकार ने ऐसा कोई वादा जनता से नहीं किया था।

बजट में सरकार ने जन औषधि केन्द्र योजना के तहत साल 2024 तक सभी जिलों में 2000 दवाओं और 300 शल्‍य चिकित्सा की पेशकश करने की बात कही है। बीमारियों से लड़ने के लिए साल 2014 में पेश की गई इंद्रधनुष योजना का दायरा बढ़ाने की बात भी सरकार ने कही है। लेकिन, पिछले बजट में इस बारे में कुछ नहीं कहा गया बल्कि 31 अक्तूबर, 2019 को इसे इंटेंसिफाइड मिशन इंद्रघनुष 2.0 का नाम दिया गया। देश में अब तक इस कार्यक्रम के जरिए 3.39 करोड़ बच्चों और 87.2 लाख गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण किया जा चुका है। बजट 2020-21 में अब पांच और नए वैक्सीन जोड़ दिए गए हैं।

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मिशन इंद्रधनुष 12 बीमारियों से लड़ता है। भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 25 दिसंबर 2014 को ‘मिशन इन्द्रधनुष’ की शुरुआत की थी। मिशन इन्द्रधनुष एक बूस्टर टीकाकरण कार्यक्रम है जो कम टीकाकरण कवरेज वाले 201 ज़िलों में शुरू हुआ था। जब यह शुरू किया गया था तो इसमें सात रोगों- टीबी (Tuberculosis), पोलियोमाइलाइटिस (Poliomyelitis), हेपेटाइटिस बी (Hepatitis B), डिप्थीरिया (Diphtheria), पर्टुसिस (Pertussis), टेटनस (Tetanus) और खसरा (Measles) को शामिल किया गया था. बाद में खसरा रूबेला (Measles Rubella), रोटावायरस (Rb otavirus), हिमोफिलस इन्फ्लूएंजा टाइप-बी (Haemophilus Influenza Type-B ) और पोलियो (Polio) के खिलाफ टीकों को शामिल करने के बाद इन टीकों की संख्या 12 हो गई थीं। कुछ चुने गए राज्यों और ज़िलों में, जापानी एन्सेफलाइटिस ( (Japanese Encephalitis) और न्यूमोकोकस (Pneumococcus) के खिलाफ भी टीके दिये जा रहे हैं।

स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए इस वक्त फिट इंडिया मूवमेंट भी चल रहा है। सरकार का यह एक अच्छा कदम कहा जा सकता है अगर खासकर स्कूलों में इसे गंभीरता से लागू किया जाए। लैंसेट साइकियाट्री की 2019 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में सबसे ज्यादा होने वाली आत्महत्याओं की वजह मानसिक रोग है जो इसकी शुरूआत किशोरावस्था में ही हो जाती है। नॉन कम्युनिकेबल डिसीज यानी असंचारी बीमारियों को रोकने के लिए फिट इंडिया मूवमेंट एक और भी तब अच्छी पहल मानी जाती जब सरकार इसमें बच्चों, जवानों और बूढ़ों सबको शामिल कर उन्हें आधारभूत सुविधा और संसाधन मुहैया कराती। पिछले साल के बजट में इस मूवमेंट का कोई जिक्र इसलिए नहीं है क्य़ोंकि 29 अगस्त, 2019 को ही सरकार ने यह अभियान शुरू किया है।

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स्वच्छ भारत मिशन को बजट 2020-21 में 12,300 करोड़ रुपए मिलें हैं। जो 2019-20 के बजट में 12,644 करोड़ मिले थे और उससे पहले के बजट (2018-19) में 31 फीसद कम यानी 19,427 करोड़ मिले थे। इस अभियान को सरकार ने 2014 में जितने जो-शोर से शुरू किया था आखिर क्या वजह है कि उसपर बजट लगातार हर साल कम होता जा रहा है। हालांकि, देश में स्वच्छा का टारगेट सरकार ने 2019 तय किया था जो पूरा नहीं हो पाया है। इसलिए सरकार को चाहिए कि योजना बनाने के बाद उसे उसी बजट राशि में जमीन पर पूरी करने की हर कोशिश करे। बहरहा, लगता है स्वच्छता की बदलती सूरत कम बजट राशि के चलते आगे असर क्या और कैसा दिखाएगी ये आने वाला वक्त तय करेगा।

’टीबी हारेगा देश जीतेगा’ अभियान शुरू किया गया- साल 2025 तक तपेदिक को समाप्‍त करने की प्रतिबद्धता सरकार ने बजट में दिखाई। 2025 में ग्लोबल सस्टेंनेबल डेवलेपमेंट टारगेट से ठीक पांच साल पहले सरकार ने यह घोषणा की है। भारत में टीबी से हर दिन 1,400 और हर साल 480,000 लोगों की मौत हो रही है। आज भी देश में टीबी के हजारों मामले दर्ज नहीं होते और प्राइवेट अस्पतालों में ठीक से चिकित्सा नहीं हासिल कर पाते जिसके चलते इससे मरने वालों की तादाद रुक नहीं रही है। मार्च 2015 में सरकार टीबी प्रोग्राम को राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य अभियान यानी एनआरएचएम में समाहित कर चुकी है। सरकार के पास इस फैसले की चाहे कोई भी वजह रही हो लेकिन, इससे जुड़े लोकल वर्कर से लेकर मंत्रालय तक के कर्मियों के काम पर बुरा असर पड़ा है। स्कीम को केन्द्रीकृत करने से न तो इसपर लोगों का बहुत भरोसा ही रहा और जुड़े लोगों को भी वेतन और इस तरह की परेशानियों से जूझना पड़ रहा है।

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तो इस तरह सरकार ने 2020-21 के बजट में स्वास्थ्य को कुछ अच्छी खबर दी है लेकिन, कई मुद्दों के बारे में खामोश ही रही। जीएसटी, बुनियादी ढाचां, देश में बने मेडिकल उपकरणों के प्रचार और प्रसार सहित हेल्थ सेक्टर को सरकार से रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए अनुदान मिलने की भी जो उम्मीद थी उस बारे में सरकार ने चुप्पी ही साधी रही। सरकार को बजट में फेडरेशन ऑफ हेल्थकेयर डेटा के विकास के लिए फंड करना चाहिए था ताकि इस क्षेत्र में सरकार को योजनाएं बनाते समय सही डेटा मिल सके जो न हो सका। इस डेटा फडरेशन से रिसर्च को भी फायदा पहुंचने वाला है जहां से क्षेत्र को आगे बढ़ने का रास्ता मिलेगा। हालांकि, सरकार मेडिकल रिसर्च के बारे में भी बजट पर खामोश दिखी।

 

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